Monday, 28 July 2014

वह बोली

 
वह बोली   
दिल की ख़ाक है
कैसे छोड़ दूँ!
मैंने कहा 
खाक पे कौनसी छाप है 
बस झाड़ दो 
 
वह बोली
सपनों के क़तरे
सुखे हुए आँसू
मैंने कहा 
बेजान हैं 
बस छोड़ दो 
 
वह बोली
बिखरी हुइ उम्मीदें 
तिड़कते हुऐ हौसले
मैंने कहा 
जिंदगी की हक़ीक़त है 
बस आगे बड़ो 
 
वह बोली
सिसकती प्यार की क़समें
झुलसते हुऐ वादे
मैंने कहा 
तेरे  काम के नहीं 
बस साथ मत घसीटो 
 
वह बोली
अंधजले विश्वास के तिनके 
सुलगते दिल के नाते!
मैंने कहा 
बहुत मिलेंगे रास्ते में 
बस चलते  रहो 
 
वह बोली
जाने से पहले बता देना
दिल की ख़ाक है
क्या रखूँ।
मैंने कहा 
दिल में तो आप हैं 
बस मुझे  खाक से मिलादो 

HSD १७/०७  /२०१४

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